Real life story of woman – FETTERS ( बेड़ियां )- A Truth PART – 1 | आधुनिक काल में महिलाओं की स्थिति PDF

Real life story of woman – FETTERS ( बेड़ियां )- A Truth PART – 1 | आधुनिक काल में महिलाओं की स्थिति PDF

 

real life story of women | आधुनिक काल में महिलाओं की स्थिति PDF
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हेल्लो दोस्तों और मेरे सारे पढ़ने वालो ,आज की कहानी सिर्फ एक कहानी  नहीं बल्कि हमारे समाज का वो आइना है जिसे देखता तो हर कोई है पर..Real life story of woman  – FETTERS ( बेड़ियां )- A Truth Part 1

” यही रीत है इस दुनिया कि ”

ये का कर या तो सच से मुंह मोड़ लिया जाता है और कुछ लोग इसे कबूल करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते है और इसलिए भी कुछ लोग चुप रह जाते है।।

आज की कहानी उस हर लड़की की है जो अपने ही घरों में    ” बेड़ियों” तले दबी हुई है और वो भी अपनो के हाथो।।

आशा है कि आप सबको पसंद आएगी।।

 

                                            Title –  ” बेड़ियां – एक सच्चाई “

‘ बेटा ‘ ये शब्द जब भी हम सुनते है तो हमारी आंखों में कोई पुरुष की तस्वीर बनती है। लेकिन ये पहले हुआ करता था, जहा  बेटा सिर्फ उस इंसान को कहा जाता था जिसके पास मुछे हो,जो दिखने में और कुदरत का बनाया हुआ लड़का हो।।

आज की कहानी ऐसी नहीं रही। आज के माता पिता बेटा अपनी बिना मूछे वाले और कुदरत का ना बनाया हुआ इंसान को भी कहते है।।

हां ,मै  ‘ बेटी ‘ की बात कर रही हूं । आज के माता पिता अपनी बेटियों को भी बेटा कह के पुकारते है ,पहले भी कहते थे पर आज जायदा तर माता पिता ये मान चुके है कि उनकी बेटी भी कम नहीं ।

आज बेटी को बेटे का नाम तो मिल गया है और बोली भी बदल गई है पर अगर कुछ नहीं बदला तो वो है बेटियों के प्रति इस समाज की ‘ सोच ‘।।

और इस सोच से कहीं ना कहीं माता पिता भी प्रभावित होते है।

Real life story of woman – FETTERS ( बेड़ियां )- A Truth PART – 1

वो  बेड़ियां जो आज भी बेटी और बेटे में फर्क करता है।।

प्रकृति रॉय तो इसके पिता ने दिया और ये कहते हुए दिया की मेरी बेटी है नाम तो कुछ हट के होना चाहिए। आखिर किसी बेटे से कम थोड़े ना है।

प्रकृति चार बहनों में तीसरे नंबर पर है। जिस वक़्त ये नाम उसके पिता ने दिया था उस वक़्त लोग इस नाम से रूबरू भी नहीं थे और बहुत ही कम लोगो ने सुना था।।

जब हम एक बेटी और पिता के रिश्ते के बारे में बात करते है तो हमारे मन में एक तस्वीर बनती है। जहा पिता अपनी बेटी से बहुत प्यार करता है और उसे अपने पलको पे बिठा कर रखता है, उसके लिए कुछ भी कर सकता है। उसकी बेटी कि खुशी ही सब कुछ है उस पिता के लिए ।।

 

पर हर एक बेटी इतनी भाग्यशाली नहीं होती। और प्रकृति भी उनमें से एक थी। पिता और बेटी का रिश्ता तो ठीक था पर समाज के उस ढकिया नुशी बातो का असर पड़ रहा था उसके और और उसके पिता के बीच में ।।

उन बेड़ियों ने जगह बना ली थी।।

कहने को तो हमेशा प्रकृति को बेटा कह के बुलाते है पर वो कहते है ना कि ‘ कहनी और करनी में फर्क होता है ‘।

प्रकृति  कद कठी में औसत थी ,ना जायदा लंबी और ना जायदा नाटी। रंग में गोरी थी। पर पढ़ाई में भी औसत और माता पिता की लाडली भी नहीं ।

बोलने में मुंहफट थी । जायदा सोचती नहीं है कि क्या बोलना चाहिए और सामने वाले पे क्या असर होगा बस.. जो मन में आता है बोल देती है । दिल में कोई बात नहीं रखती ,जो दिल में है वो जुबान पे है।।

बिहार के गया जिले की रहने वाली प्रकृति अपने चार बहनों,एक बड़े भाई  और माता पिता के साथ रहती थी।।

और बच्चो की तरह बचपन कुछ खास नहीं गुजरा की कोई याद रखे अपने दिल में।

जैसा हम फिल्मों में देखते है पापा की गुड़िया , ऐसा कुछ नहीं था।।

प्रकृति जब फिफ्थ क्लास में थी तब उसका दाखिला प्राइवेट स्कूल में हुए और उसकी छोटी बहन का दूसरी क्लास में।

उम्र में जायदा बड़ी नहीं थी वो अपनी छोटी बहन से पर मां पापा और समाज के लोगो के नज़रों में बड़ी ज़रूर थी।

स्कूल का पहला दिन और मां प्रकृति से कहती है…

मां – बेटा ,अपनी छोटी बहन का ख्याल रखना ,तुमसे  छोटी है ना  कोई गलती ना हो जाए।

और ये प्रकृति कि ज़िन्दगी की पहली ‘ ज़ंजीर ‘ थी। जहा वो खुद एक छोटी लड़की है और उसे कुछ समझ आए या ना आए उसे अपनी बहन का ख्याल रखना पड़ेगा।।

छोटी बहन जब भी कोई गलती करती तो सवाल प्रकृति से किया जाता की तुम कहा थी । ये तो छोटी  है और नासमझ भी ,पर तुम तो  बड़ी हो ,समझदार हो..

‘ समझदार..’ होना ये दूसरी ज़ंजीर जहा उससे ये नहीं पूछा जाता की तुम्हे अपनी ज़िन्दगी जीने का हक है भी या नहीं।

चाहे समझदार हो या ना हो ये एक मानसिक ज़ंजीर है जहा अनजाने में ही सही पर माता पिता अपने बच्चो की आजादी तक छीन लेते है ।। प्रकृति के मन में ये डाल दिया जा रहा था कि तुम बड़ी हो और तुम्हे समझदार होना होगा फिर चाहे आप उम्र में छोटी हो या बड़ी ,किसी को फर्क नहीं पड़ता ।।

और ऐसी कितनी बेड़ियां प्रकृति के मन पे, उसकी मानसिक सेहत पे और उसकी आत्मा पर लगाई गई।

धीरे धीरे वक़्त साल में बीत गया और साल ,सालो में..और फिर प्रकृति दसवीं पास कर गई।

मध्य वर्गीय परिवार  और लोगो की एक अलग ही धारणा होती है कि अगर घर में बेटे ने जन्म लिया है तो उसे सब कुछ सीखना पड़ेगा , समझाना पड़ेगा कि कब ,क्या ,क्यूं और कैसे करना है।

लेकिन, जब एक बेटी जन्म लेती है तो उससे लोग पहले ही ये उम्मीद लगा लेते है कि बेटी है ना समझ जाएगी ,समझदार होगी ,इसे तो कुछ समझाने की ज़रूरत ही नहीं है ,कुछ भी सीखने की ज़रूरत ही नहीं है ।क्यूंकि ये पराया धन है ।

दसवीं पास करने के बाद प्रकृति बारवी में गई और यहां से शुरू होता है एक अलग बेड़ियों का सिलसिला ।।

* ट्यूशन से घर जल्दी आना बेटा ,घर पे कोई होता नहीं ना।। * घर में कौन आता है ,इस पर ध्यान रखना ।।                    * छोटी बहन के स्कूल चली जाना,उसकी फी भरनी है।।        * जायदा देर  तक दोस्तो के घर मत रहा करो।। इत्यादि….

और ऐसी बहुत सारी जो अनकही है और हर घर में होता है, जहा मां बाप ये नहीं कहते की तुम ये काम करो ही पर एक मानसिक प्रेसर आता है कि अगर वो नहीं किया जो माता पिता चाहते है तो क्या होगा।।

जैसे उनकी हर उम्मीद पे खरे उतरना ज़रूरी है वरना हम बेटियां एक अच्छी बेटी नहीं कहलाएंगे ।।

और फिर माता पिता के वो ताने की तुमने तो हमारी बात ना मान कर हमारी नाक ही कटवा दी समाज में।

हम बेटियों कि ज़िन्दगी कभी हमारी होती ही नहीं। हमे क्या करना है और क्यों करना है ये सब कुछ घर वाले डिसाइड करते है।। और हम अंदर ही अंदर घुटते रहते है।।

प्रकृति जो एक खुले मिजाज़ कि लड़की थी और अपनी ज़िन्दगी अपने तरीके से जीना चाहती थी।अपने सपनों को पंख देना चाहती थी वो सब माता पिता की बेड़ियों तले बड़े हुए थे।

दो बड़ी बहनों की शादी के बाद प्रकृति कि बारी थी पर वो अभी शादी नहीं करना चाहती थी पर घर के हालात और उसके माता पिता  के बीच हमेशा झगड़े को लेकर वो अक्सर परेशान रहा करती ।

एक तरफ उसके पिता से उसकी जायदा बात नहीं होती और दूसरी तरफ उसकी मां जो उसके सबसे जायदा करीब थी ।और वो कुछ करना चाहती थी अपनी मां के लिए ,अपने लिए पर… उसकी मां बस एक ही जिद्द लिए बैठी थी कि तू शादी कर ले ताकि मै फ्री हो जाऊ।।

उसकी मां का ये कहना की तेरी वजह से हम जायदा कहीं जा नहीं पाते । क्यूंकि उसकी दोनों बड़ी बहनों की शादी होने के बाद ,उसकी छोटी बहन भी अपने कैरियर में आगे बढ़ गई थी।

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Real life story of woman – FETTERS ( बेड़ियां )- A Truth PART – 1

बस एक प्रकृति ही थी जो अभी भी अपनी ज़िन्दगी में कुछ खास नहीं कर पाई थी और ना ही वो सब कर पाई थी जो वो करना चाहती थी।

ये सब सुन प्रकृति कभी कभी अकेले में रो लिया करती ,खुद से बाते कर लिया करती ।। क्यूंकि कोई सुनने वाला ही नहीं था।

पर प्रकृति ने कभी हार नहीं मानी और हमेशा ठंडे दिमाग से सोचा कि उसके और उसके परिवार के लिए क्या अच्छा है।।

प्रकृति जैसी आज कितनी लड़कियां है हो इस तरह के बेड़ियों से बंधी हुई है और हम कुछ नहीं कर रहे ।इसी के साथ जीने के बेजाय उससे निकालना कैसे चाहिए ये ना सीख कर हम ये सीखा रहे है कि उसमे एडजस्ट कैसे हो।।

ये इस कहानी का अंत नहीं है,आज भी संघर्ष जारी है और अगर यही सोच रहे तो आगे भी रहेगी।

हमारे समाज मै ना जाने ऐसी कितनी बेड़ियों का सामना हर लड़की को अपने ही घरों में किया जाता है। और हमारे अपने इस बात से बेखबर होते है कि उसकी भी कोई मर्जी हो सकती है।।

हम बस अपनी मर्जी थोप देते है और उनकी मासूमियत यही सब उम्मीदों को पूरा करने में कहीं खो जाती है।

सीख इस कहानी के :-

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2. हमे हमेशा दबने कि ज़रूरत नहीं है ,और ना ही भावुकता के साथ कोई निर्णय लेने की ज़रूरत है जैसे प्रकृति  ने किया। वो चाहती तो अपनी मां की बातो में आकर शादी कर सकती थी पर उसे पता था कि प्रॉब्लम से भागना किसी प्रॉब्लम का सॉल्यूशन नहीं है।

 

दोस्तो इसका दूसरा पार्ट मै जल्द ही upload करूंगी ।

इसके अगले पार्ट में मै शादी के बाद आने वाली बेड़ियों के बारे में बात करूंगी।

आपको ये कहानी कैसी लगी हमे कॉमेंट करके ज़रूर बताए  और अगर आपकी कोई राय है जो आप हमारे साथ साझा करना चाहते है तो बेशक और बेझिझक हो कर करे। हमे अच्छा लगेगा और हमारे पढ़ने वालो को भी।।

अगर ये कहानी आपको पसंद आई है तो इसे अपने दोस्तो और जानने वाले के पास ज़रूर share करे ।।

तब तक के लिए गुड बाय और अपने घरों में रहिए , सुरक्षित रहिए ।।

आपके कीमती वक़्त के लिए दिल से शुक्रिया ।।

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